(उत्तरप्रदेश)बदायूँ/बिसौली-:नगर की तंजीम आइम्मा ए मस्जिद की ओर से एक खास जलसे का एहतमाम किया गया। जिसमें उलेमाओं ने अपने अपने विचार व्यक्त किये। उन्होंने कहा मज़हबी पेशवाओं की जिंदगियां उनके इंतकाल के कुछ साल बाद बदल दी गईं, मगर प्यारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सीरते तय्यबा जूं का तूं आज भी महफूज़ व मामून है। सीरते रसूल खुद नहीं बदली बल्कि बिगड़े हुए इंसानों के ज़ाहिर व बातिन को बदल दिया।सीरते रसूल से मिलने वाला दर्स हर शख्स के लिए बहुत अहमियत का हामिल है। प्यारे रसूल ने हज्जतुल विदा के खुतबे में कई अहम बातें बयान फरमाइं जिनमें इंसानियत की अज़मत, एहतिराम और हुकूक पर आधारित अबदी शिक्षा काबिले गौर हैं। मगर ख्याल रहे कि सीरत में हुकूक ए इंसानी से संबंधित वाहिद दस्तावेज़ नहीं, बल्कि नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पूरी जिंदगी उम्दा अख़लाक़, तकरीम ए इंसानियत का आइना है। इसी तरह नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ला कानुनियत के खात्मे, माल के तहफ्फुज़ का हक़, समाज में रहने वाले तमाम अफराद के हुकूक, नौकरों के हुकूक, आर्थिक शोषण से तहफ्फुज़ का हक़, विरासत का हक़, और मियाँ बीवी के हुकूक आदि के संबंध में बहुत उम्दा शिक्षाएं दी।जिसका नतीजा यह हुआ कि पूरी दुनिया में इंसानी हुकूक और अक़दार व रिवायात की पासदारी का दौर बड़ी तेज़ी से शुरू हुआ और मुसलसल तरक्की पज़ीर है। इंसानी तरक्की का सफर अभी भी जारी है। लेकिन इस सिलसिले में इखलास तभी संभव है जब मौजूदा दौर का इंसान सीरते नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ठीक उसी तरह गले लगाए जिस तरह तारीक दौर में सीरते नबी को पहली बार बनी आदम ने गले से लगाया था।बड़ा ही खुश गवार माहौल हो जाए लोग अगर सीरत ए नबी पर अमल कर लें। सीरत ए रसूल यह है, मजदूर का पसीना सूखने से पहले उसकी मजदूरी अदा कर दी जाए। इस मौके पर तांसीम के सभी मेंबरान मौजूद रहे।
रिपोर्ट-आई एम ख़ान