ज़िम्मेदारों की लापरवाही से अंश निर्धारण खतौनी काश्तकारों के लिए बनी जी का जंजाल, काश्तकार परेशान बैनामों में भी आयी गिरावट।
रीयल टाइम खतौनी में नहीं बना संशोधन करने का विकल्प,प्रार्थनापत्र लेकर तहसील के चक्कर काटने को मजबूर।
डीएम की अध्यक्षता में लगे सम्पूर्ण समाधान दिवस में गलत अंश निर्धारण होने पर फरियाद लेकर पहुँचे काश्तकार।
(उत्तर प्रदेश) बदायूं/सहसवान-: शासन द्वारा जमीन के बंटवारे और अभिलेखीय त्रुटि के कारण उत्पन्न होने वाले विवादों को अंश निर्धारण खतौनी से कम किया जाने के उद्देश्य से बनाई गयी कृषि योग्य भूमि की राजस्व विभाग के पास खतौनी होती है। इसमें गाटा संख्या और भूमिधर के नाम दर्ज होते हैं। एक ही परिवार की खतौनी में नाम तो सभी के दर्ज होते हैं, लेकिन उसमें कितना हिस्सा किसका है, ये दर्ज नहीं होता है। इसके कारण बड़े पैमाने पर विवाद होते हैं। तथा
न्यायालयों में भी अधिकतर विवाद अंश निर्धारण के ही आते हैं। इन विवादों को कम करने के लिए अंश निर्धारण खतौनी तैयार की गयी है इसमें नाम और गाटा संख्या के साथ-साथ सबका अंश या हिस्सा भी अंकित है।
मगर रीयल टाइम खतौनी में संशोधन का विकल्प नही होने के कारण अंश निर्धारण खतौनी काश्तकारों के लिए परेशानी का सबब बन गयी है।अंश निर्धारण में गड़बड़ी के कारण काश्तकार परेशान है।सही कराने के लिए किसान प्रार्थनापत्र लेकर तहसील के चक्कर काटने को मजबूर है जिम्मेदार मदद करने के लिए अपने हाथ खड़े कर रहे हैं। ज़िम्मेदारों का कहना है संशोधन के लिए नया शासनादेश नहीं आया है। यह सुनकर काश्तकार खासे निराश है।बता दे वर्ष 2023 में शासन ने खतौनी की प्रकृति बदलने के निर्देश दिए थे। इसके तहत फसली वर्ष 1431 से 1435 की रीयल टाइम खतौनी तैयार करनी थी। इसमें प्रत्येक गाटे की अलग अलग अंश निर्धारण खतौनी तैयार कर खातेदार व सह खातेदारों का अंश निर्धारण किया गया। अधिकतर अंश निर्धारण खानापूर्ति कर गलत कर दिए जिससे काश्तकारों के सामने परेशानी खड़ी हो गयी है।शासन की मंशा के अनुरूप यदि हल्का लेखपाल धरातल पर जाकर अंश निर्धारण करते तो अभियान में काफी हद तक जमीनों का विवाद भी समाप्त हो जाता सहसवान तहसील के अधिकतर ग्रामो में काश्तकारों का सही अंश नही दर्ज हुआ है यदि ज़िम्मेदार धरातल पर जाकर जांच करते तो सभी के सही अंश निर्धारण होते।अंश बनाने में लेखपालों की अहम भूमिका है पुरानी खतौनी और 1425 से 1430 फसली वर्ष के पूर्व हुए अंश निर्धारण को आधार बनाकर रीयल टाइम खतौनी तैयार कर परिषद की वेबसाइट पर अपलोड कर दी गई। बाद में जब खतौनी निर्गत होने लगी तो तमाम खामियां उजागर हुईं। अंश निर्धारण में किसी का रकबा कम हो गया तो किसी का हिस्सा कम हो गया तो किसी का खाते से नाम ही गायब हो गया गलत तरीके से अंश निर्धारण होने से काश्तकार परेशान हैं।
इसमें संशोधन का कोई विकल्प नहीं बनाया गया है जिससे संशोधन कर ठीक किया जा सके।
ज़िम्मेदारों की लापरवाही की सज़ा सीधे काश्तकारों को मुकदमे में फंसकर झेलनी पड़ रही है। संशोधन के लिए उन्हें उत्तर प्रदेश राजस्व सहित की धारा 34 व 38 के तहत तहसील स्तरीय न्यायालय में वाद दाखिल करना पड़ रहा है। इधर उप निवन्धक कार्यालय में बैनामों में नई खतौनी अनिवार्य है मगर रीयल टाइम खतौनी में अंश निर्धारण गलत होने से बैनामों पर सीधा असर देखने को मिल रहा है काश्तकार जब बैनामे के लिए खतौनी निकलवाकर लाते है तो गलत अंश निर्धारण देख पसीने छूट जाते है काश्तकारों
को बैनामा छोड़ खतौनी दुरुस्त कराने के लिए अपनी पैरवी करते देखे जा सकते है । बैनामे कम होने के चलते राजस्व हानि हो रही है काश्तकारों को रीयल टाइम खतौनी में अंश सही कराने के लिए शासन से नई गाइडलाइन का इंतजार करना पड़ रहा है।
डेस्क- राष्ट्रीय न्यूज़ टुडे।