उत्तर प्रदेश, चन्दौली/इलिया-: आधुनिक युग में हमारा देश विभिन्न क्षेत्रों में नित्य नई प्रगति कर रहा है परन्तु हम देखते है कि हमारे समाज में पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव बढ़ रहा है जिस कारण भारतीय समाज में नशे की प्रचलन तेजी से फैल रही है । प्राचीन भारत में मदिरा का सेवन घृणित कार्य माना जाता था । लेकिन आधुनिक युग में शराब का सेवन प्रतिष्ठित कार्य माना जाता है । आज के नवयुवक इस नशे के आदी होते जा रहे है , जिससे यह आदत उनके शारीरिक व मानसिक पतन का कारण बन रही है । मादक पदार्थों का व मदिरा के बढ़ते प्रचलन से चिन्तित विश्व स्वास्थ्य संगठन के आकड़ो पर गौर करे तो लगभग 40 लाख व्यक्ति एल्कोहल के सेवन से हार्टअटैक , व लिवर की खराबी , सड़क दुर्घटना , अत्महत्या तथा कैंसर जैसे रोगो से जान गवां देते है । जो वर्ष में होने वाली समान मौतो का अनुमानिक प्रतिशत 4.8 है । आज कोई भी उत्सव मदिरा के बिना पूरा नहीं माना जाता है । इस कार्य में पुरूषों व महिलाओं द्वारा भी मादक पदार्थों का सेवन शुरू हो चूका है जिसकी संख्या लगभग 4.8 प्रतिशत के करीब है । इंग्लैण्ड में शोधकर्ताओं के शोध के आधार पर निष्कर्ष निकला है कि व्यक्ति को मादक पदार्थो के सेवन से ज्यादा शराब चार गुना हानिकारक है । जैसे हमें शत्रुओ की अपेक्षा मदिरा से अधिक डरना चाहिये ।
किसी भी समाज अथवा देश का नशीला वातावरण उस समाज की शक्ति , साहस , मान – मर्यादा , राजनैतिक व नैतिकता के आगे प्रश्न चिन्ह है । हमारे देश में भी हालात चिन्ताजनक है , पिछले दशक से यहाँ मदिरा का कुल अधिकतम उत्पादन दस गुना बढ़ गया है । प्रचीन समय से चिकित्सा जगत में चिकित्सक नशे की लत को सामान्य संवेगात्मक बिखराव के रूप में मानते थे । गत वर्षो तक अनेक देश उक्त समस्या से जूझते रहे , लेकिन अब चिकित्सा जगत ने यह स्वीकार कर लिया है , कि मद्यपान ही वास्तविक समस्या है । हर किसी को इसके सेवन से बचना होगा, तभी एक खुशहाल जीवन जीया जा सकता है।