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लखीमपुर खीरी-: रमजान- नन्हे रोजेदार भी दे रहे जज्बा और सब्र का इम्तिहान, अल्लाह की इबादत में नन्हे रोजेदार भी आगे।

उत्तर प्रदेश, लखीमपुर खीरी-: माह- ए-रमजान में रोजा रखने व इबादत का दौर चल रहा है। भूखे-प्यासे रहकर अल्लाह की इबादत में नन्हे रोजेदार भी मशगूल हैं कुछ बच्चों ने इस साल पहला रोजा रखा तो कई पिछले दो या तीन साल से रोजा रख रहे हैं। दिन भर भूखे-प्यासे रहकर पांचों वक्त रब का सजदा कर दुआ मांग रहे हैं। बच्चों का जज्बा और सब्र देखकर बड़े भी उनके कायल हैं इस्लाम के 12 महीनों में माह- ए-रमजान सबसे खास माना जाता है। इसमें हर बालिग के ऊपर रोजा रखना फर्ज है, लेकिन यहां नौनिहाल भी रोजा रखकर इबादत करने में पीछे नहीं हैं। नन्हे रोजेदारों का कहना है, कि घर में बड़ों को देख रोजा रखने की हसरत जगी। अल्लाह की इबादत के लिए वह रोजा रख रहे हैं। अल्लाह उन्हें हिम्मत और सब्र दे रहा है। भूख-प्यास बिल्कुल नहीं सता रही है। सात साल से लेकर 10 साल तक के बच्चे रोजा रखकर यह संदेश दे रहे हैं, कि खुदा से प्रेम और इबादत में उम्र का बंधन आड़े नहीं आता है।

10 साल के मोहम्मद अब्बास ने रखा पहली बार रोजा।

पहली बार रोजा रखने वाले मो.अब्बास महज 10 साल के हैं। अब्बास बताने हैं, रमज़ान शरीफ़ के चौदवा रमज़ान को अपने जीवन का पहला तोज़े रखा। अब्बास ने बताया कि आज उसने अपनी ज़िंदगी का पहला रोज़ा रखा नमाज़े अदा की और अपने रब से अपने परिवार वालो की लम्बी उम्र की दुआये माँगी। और रोजे में अम्मी और पापा के साथ सहरी और इफ्तार करता हूं। इस दौरान कुरान की तिलावत और इबादत में ज्यादा वक्त गुजारता हूं।

दस साल की उम्र में रोजेदार बन गए अर्श खान।

अर्श महज दस साल की उम्र में रोजेदार बन गए हैं। इन्होंने अपनी अम्मा से जिद कर पहला रोजा रखा है। हैदर घर के बड़ों के साथ रोजा रखकर नमाज की पाबंदी भी करते हैं। तरावीह की नमाज भी नहीं छोड़ते। अर्श का कहना है, कि तरावीह में कुरान सुनने का मौका मिलता है। अरायतल ने बड़ों को देख इबादत का सीखा सलीका

महज 9 साल की इकरा भी रमजान में इबादत गुजार बन गई हैं।

रोजा रखने वाली इकरा बड़ों को देखकर इबादत के तरीके व सलीका सीख गई हैं। अम्मी के साथ वह पहले वजू करती हैं, फिर नमाज अदा करती हैं। बच्चों की इबादत अल्लाह को बहुत पसंद

आदिम 11 साल की उम्र से रोजा रख रहे हैं। यह उनका पहला रोजा है।

वह कहते हैं, कि बच्चों की इबादत अल्लाह को बहुत पसंद है। अगर इबादत में हमसे कुछ गलतियां भी होंगी तो मासूमियत देखकर खुदा माफ कर देगा। रमजान में नमाज के वक्त वह मस्जिद भी जाते हैं

11 साल की उम्र से इनया ने भी रक्खा रोजा।

इनया की उम्र 11 साल है। इनया का कहना है, कि अल्लाह की इबादत करते घर के बड़ों को देख उनका भी मन नहीं माना तो रोजा रखा। इनया कहती हैं, कि नेक रास्ते पर चलकर ही हम रब को राजी कर सकते हैं अब्बू-अम्मी के साथ करते सहरी और इफ्तार।

रिपोर्ट- मोहम्मद असलम, लखीमपुर खीरी।

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